बुधवार, 29 अप्रैल 2015

12 दिनों में कितना कुछ बदल गया!

नेपाल और आधे भारत में जानलेवा भूकंप. बिहार-झारखंड में आंधी-बारिश से जानमाल की भारी तबाही. 56 दिनों की लंबी छुट्टी के बाद राहुल गांधी की ‘घर वापसी’. जनता परिवार का एक होना और सीपीएम का नेतृत्व सीताराम येचुरी के हाथ में जाना. ये कुछ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की घटनाएं हैं जिनका मैं टीवी-अखबार के जरिये गवाह न बन सका. भतीजी की शादी में शिरकत करके गांव से 12 दिनों बाद लौटने पर इन सभी खबरों से वाकिफ हुआ. घर में जब बेटी की शादी हो तो देश-दुनिया की फिक्र कहां रह जाती है? इंटरनेट, फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर, अखबार, टेलीविजन सबसे दूर..12 दिन. बीते 12 दिनों के अखबार पलटते हुए लग रहा है कि इतने दिनों में वाकई कितना कुछ बदल गया है. हवाई यात्र के लिए चर्चित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के मेट्रो ट्रेन में सफर करने लगे हैं. यह अलग बात है कि पहली बार दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद केजरीवाल ने जब मेट्रो का सफर किया था तो भाजपा समेत अन्य राजनीतिक दलों ने इसकी खूब आलोचना की थी. कहा था कि यह प्रचार पाने का हथकंडा है. यह अच्छी बात है कि अब उन सभी आलोचकों के ज्ञान चक्षु खुल गये हैं और वह यह समझ गये हैं कि किसी बड़ी शख्सियत का मेट्रो में सफर करना प्रचार पाने का उपक्रम नहीं है. तभी तो सभी चुप हैं. ऐसी ही एक अन्य विस्मयकारी राजनीतिक घटनाक्रम के तहत सोशल मीडिया के ‘पप्पू’ (राहुल गांधी) अब संसद में कुर्ते की आस्तीनें चढ़ाये बिना भाषण देने लगे हैं. यह जानने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा कि 56 दिनों के अज्ञात प्रवास से लौटे राहुल गांधी क्या लोकसभा चुनावों के दौरान बिखरे-बिखरे लगने वाले राहुल से अलग हैं? नयी दिल्ली में ‘आप’ की किसान रैली के दौरान राजस्थान के किसान द्वारा आहत्महत्या कर लेने के बाद राजनीतिक दलों का जो चेहरा सामने आया है वह बेहद निराशाजनक है. भाजपा-कांग्रेस की तो मौकापरस्त राजनीति की पुरानी आदत है, पर आम आदमी पार्टी भी..! राजनीति में कदम पड़ते ही एक कवि (कुमार विश्वास) और पत्रकार (आशुतोष) का भी दंभी और गैर जिम्मेदार हो जाना अनहोनी है. इन दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद, शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘कल हो ना हो’ से प्रेरित बॉलीवुड शैली के एक संगीत वीडियो में भारत में जर्मनी के राजदूत माइकल स्टेनर की पत्नी ऐलिसे के साथ डांस करते नजर आ रहे हैं. इन सभी घटनाक्रम को देख-जान कर वाकई लगता है कि भूकंप आया है. सब कुछ हिलता हुआ लग रहा है. उथल-पुथल मची हुई है. बाहर भी, भीतर भी. भूकंप सिर्फ धरती के नीचे नहीं आता है, धरती के ऊपर वालों के भीतर भी आता है. उसके लौट जाने के बहुत बाद तक हम हिलते रहते हैं. बेटी को उसके ससुराल विदा करते हुए एक भूकंप मेरे भीतर भी आया है.. अभी तक हिल रहा हूं.